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श्री राम चालीसा | श्री राम जी की आरती | श्री राम मंत्र / वंदना
Shree Ram Chalisa | Ram Arti | Ram Mantras / Vandana
इस ब्लॉग के माध्यम से श्री राम चालीसा (Shree Ram Chalisa), श्री राम आरती (Shree Ram Arti) और श्री राम मंत्र / वंदना (Shree Ram Mantras / Shri Ram Vandana) आपके समक्ष प्रस्तुत है। अत्यंत शुभ फल प्राप्त करने हेतु श्री राम जी की पूजा हर रोज नियमपूर्वक श्रद्धा, विश्वास एवं एकाग्रचित हो करने पर समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है।
राम का अर्थ है ‘प्रकाश’। किरण एवं आभा (कांति) जैसे शब्दों के मूल में राम है। ‘रा’ का अर्थ है आभा (कांति) और ‘म’ का अर्थ है मैं, मेरा और मैं स्वयं। अर्थात मेरे भीतर प्रकाश, मेरे ह्रदय में प्रकाश।
राम’ यह शब्द दिखने में जितना सुंदर है उससे कहीं महत्वपूर्ण इसका उच्चारण है। राम मात्र कहने से शरीर और मन में अलग ही तरह की प्रतिक्रिया होती है जो हमें आत्मिक शांति देती है। हजारों संतों-महात्माओं ने राम नाम जपते-जपते मोक्ष को पा लिया।
राम महादेव के आराध्य हैं। महादेव काशी में मृत्यु शय्या पर पड़े व्यक्ति (मृत व्यक्ति नहीं) को राम नाम सुनाकर भवसागर से तार देते हैं। भगवान शिव के हृदय में सदा विराजित राम भारतीय लोक जीवन के कण-कण में रमे हैं।
राम ‘महामंत्र’ है… राम नाम ही परमब्रह्म है…
श्री राम मंत्र / वंदना | Shree Ram Mantras / Vandana
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।
Nilambuj Shyamal Komalangam, Sita Samaropit Vaam Bhagam
Panau Mahashayak Charu-Chapam, Namami Ramam Raghuvansh Natham
नील कमल के सामान श्यामल, सुन्दर, सांवले और कोमल अंग वाले, जिन के बाई ओर सीता माता विराजमान हो कर के इस दृश्य को और भी सुशोभित करती है, जिन के दोनों हाथो में अमोघ धनुष और बाण इस प्रिये छबी को और भी निखारते है, उन रघु कुल के शिरोमणि को हम नमस्कार करते है , प्रणाम करते है।
रा रामायनम (६ अक्षर मंत्र)
Ra Ramayanam (6 Word Ram Mantras)
ॐ रामचन्द्राय नमः (८ अक्षर मंत्र)
Om Ramchandray Namaha (8 Word Ram Mantras)
श्री राम जय राम जय जय राम (१३ अक्षर मंत्र)
Shri Ram Jai Ram Jai Jai Ram (13 Word Ram Mantras)
ॐ नमो भगवते रामाय महापुरुषाय नमः (१८ अक्षर मंत्र)
Om Namo Bhagwatay Ramaya Mahapurushaya Namaha (18 Word Ram Mantras)
श्री राम चालीसा | Shree Ram Chalisa
श्री रघुवीर भक्त हितकारी, सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई, ता सम भक्त और नहिं होई।
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं, ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं।
जय जय जय रघुनाथ कृपाला, सदा करो सन्तन प्रतिपाला।
दूत तुम्हार वीर हनुमाना, जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना।
तव भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला, रावण मारि सुरन प्रतिपाला।
तुम अनाथ के नाथ गोसाईं, दीनन के हो सदा सहाई।
ब्रह्मादिक तव पार न पावै, सदा ईश तुम्हरो यश गावैं।
चारिउ वेद भरत हैं साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी।
गुण गावत शारद मन माहीं, सुरपति ताको पार न पाहीं।
नाम तुम्हार लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहिं होई।
राम नाम है अपरम्पारा, चारिउ वेदन जाहि पुकारा।
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हौ, तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हौ।
शेष रटत नित नाम तुम्हारा, महि को भार शीश पर धारा।
फूल समान रहत सो भारा, पाव न कोउ तुम्हारो पारा।
भरत नाम तुम्हरो उर धारो, तासों कबहु न रण में हारो।
नाम शत्रुहन हदय प्रकाशा, सुमिरत होत शत्रु कर नाशा।
लषन तुम्हारे आज्ञाकारी, सदा करत सन्तन रखवारी।
ताते रण जीते नहिं कोई, युद्ध जुरे यमहूं किन होई।
महालक्ष्मी धर अवतारा, सब विधि करत पाप को छारा।
सीता नाम पुनीता गायो, भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो।
घट सों प्रकट भई सो आई, जाको देखत चन्द्र लजाई।
सो तुमरे नित पाँव पलोटत, नवों निद्धि चरणन में लोटत।
सिद्धि अठारह मंगलकारी, सो तुम पर जावै बलिहारी।
औरहु जो अनेक प्रभुताई, सो सीतापति तुमहिं बनाई।
श्री राम चालीसा इच्छा ते कोटिन संसारा, रचत न लागत पल की वारा।
जो तुम्हरे चरणन चित लावै, ताकी मुक्ति अवसि हो जावै।
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा, निर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा।
सत्य सत्य सत्य ब्रत स्वामी, सत्य सनातन अन्तर्यामी।
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै, सो निश्चय चारों फल पावै।
सत्य शपथ गौरिपति कीन्हीं, तुमने भक्तिहिं सब सिद्धि दीन्हीं।
सुनहु राम तुम तात हमारे, तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे।
तुमहिं देव कुल देव हमारे, तुम गुरुदेव प्राण के प्यारे।
जो कुछ हो सो तुम ही राजा, जय जय जय प्रभु राखो लाजा।
राम आत्मा पोषण हारे, जय जय जय दशरथ दुलारे।
ज्ञान हदय दो ज्ञान स्वरूपा, नमो नमो जय जगपति भूपा।
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा, नाम तुम्हार हस्त संतापा।
सत्य शुद्ध देवन मुख गाया, बजी दुन्दुभी शंख बजाया।
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन, तुम ही हो हमारे तन मन धन।
याको पाठ करे जो कोई, ज्ञान प्रकट ताके उर होई।
आवागमन मिटै तिहि केरा, सत्य वचन माने शिव मेरा।
और आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावे सोई।
तीनहूं काल ध्यान जो ल्याव, तुलसी दल अरु फूल चढ़ावें।
साग पत्र सो भोग लगावै, सो नर सकल सिद्धता पावै।
अन्त समय रघुवर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई।
श्री हरिदास कहै अरु गावै, सो बैकुण्ठ धाम को जावै।
॥दोहा॥ सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय॥
आरती श्री रघुवर जी की | Shree Ram Arti
आरती कीजै श्री रघुवर जी की, सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की।
दशरथ तनय कौशल्या नन्दन, सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन।
अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन, मर्यादा पुरूषोतम वर की।
निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि, सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि।
हरण शोक-भय दायक नव निधि, माया रहित दिव्य नर वर की।
जानकी पति सुर अधिपति जगपति, अखिल लोक पालक त्रिलोक गति।
विश्व वन्द्य अवन्ह अमित गति, एक मात्र गति सचराचर की।
शरणागत वत्सल व्रतधारी, भक्त कल्प तरुवर असुरारी।
नाम लेत जग पावनकारी, वानर सखा दीन दुख हर की।
आरती कीजै श्री रघुवर जी की, सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की।
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