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श्री गणेश चालीसा | श्री गणेश जी की आरती | श्री गणेश वंदना
Shree Ganesh Chalisa | Shree Ganesh Arti | Shree Ganesh Vandana
इस ब्लॉग के माध्यम से श्री गणेश जी की आरती (Shree Ganesh Arti), श्री गणेश चालीसा (Shree Ganesh Chalisa) और श्री गणेश वंदना (Shree Ganesh Vandana) आपके समक्ष प्रस्तुत है। अत्यंत शुभ फल प्राप्त करने हेतु यह पाठ हर रोज नियमपूर्वक श्रद्धा, विश्वास एवं एकाग्रचित हो करने पर समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है।
श्री गणेश वंदना | Shree Ganesh Vandana
ऊँ गं गणपतये नमः। ॐ श्री विघ्नेश्वराय नमः॥
Om Gan Ganapataye Namaha, Om Shree Vighneshwaraye Namaha .
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
Vakratund Mahakaya Suryakotisamaprabha.
Nirvighnam Kuru Me Deva Sarvakaryeshu Sarvada.
हे! वक्रतुण्ड, महाकाय, करोड़ों सूर्यों के समान आभा वाले देव (श्री गणेश), मेरे सभी कार्यों में विघ्नो का अभाव करो, अर्थात् वे बिना विघ्नों के संपन्न होवें ।
श्री गणेश चालीसा | Shree Ganesh Chalisa
॥दोहा॥
जय गणपति सदगुण सदन, करि वर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
॥चौपाई॥
जय जय जय गणपति गणराजू, मंगल भरण करण शुभ काजू।
जय गजबदन सदन सुखदाता, विश्वविनायक बुद्धि विधाता।
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन, तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ।
राजत मणि मुक्तन उर माला, स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं, मोदक भोग सुगन्धित फूलं।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित, चरण पादुका मुनि मन राजित।
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता, गौरी ललन विश्व विख्याता।
ऋद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे, मूषक वाहन सोहत द्वारे।
कहौं जन्म शुभ कथा तुम्हारी, अति शुचि पावन मंगलकारी।
एक समय गिरिराज कुमारी, पुत्र हेतु तप कीन्हों भारी।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा, तब पहुँच्यो तुम धरि द्विज रूपा।
अतिथि जानि के गौरी सुखारी, बहु विधि सेवा करी तुम्हारी।
अति प्रसन्न हूँ तुम वर दीन्हा, मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा।
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला, बिना गर्भ धारण यहि काला।
गणनायक गुण ज्ञान निधाना, पूजित प्रथम रूप भगवाना।
अस केहि अन्तर्धान रूप है, पलना पर बालक स्वरूप है।
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना, लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना।
सकल मगन सुख मंगल गावहिं, नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं।
शम्भु उमा बहु दान लुटावहि, सुर मुनिजन सुत देखन आवहिं।
लखि अति आनन्द मंगल साजा, देखन भी आए शनि राजा।
निज अवगुण गनि शनि मन माहीं, बालक देखन चाहत नाहीं।
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो, उत्सव मोर न शनि तुहि भायो।
कहन लगे शनि मन सकुचाई, का करिहों शिशु मोहि दिखाई।
नहिं विश्वास उमा उर भयऊ, शनि सों बालक देखन काऊ।
पड़तहिं शनि दृगकोण प्रकाशा, बालक सिर उड़ि गयो अकाशा।
गिरिजा गिरी विकल है धरणी, सो दुख दशा गयो नहिं वरणी।
हाहाकार मच्यो कैलाशा, शनि कीन्हों लखि सुत का नाशा।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाये, काटि चक्र सो गजशिर लाये।
बालक के धड़ ऊपर धारयो, प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो।
नाम ‘गणेश’ शम्भु तब कीन्हें, प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हें।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा, पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा।
चले षडानन, भरमि भुलाई, रचे बैठि तुम बुद्धि उपाई।
चरण मातु पितु के धर लीन्हें, तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें।
धनि गणेश कहि शिव हिय हो, नभ ते सुरन सुमन बहु वयो।
तुम्हारी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस मुख सके न गाई।
मैं मति हीन मलीन दुखारी, करहुँ कौन विधि विनय तुम्हारी।
भजत ‘राम सुन्दर’ प्रभुदासा, जग प्रयाग ककरा दुर्वासा।
अब प्रभु दया दीन पर कीजे, अपनी भक्ति शक्ति कुछ दीजे।
॥दोहा॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै धर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै, लहै जगत सनमान॥
सम्बन्ध अपना सहस्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश।
श्री गणेश जी की आरती | Shree Ganesh Arti
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।
पान चढ़ें फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा, लडुवन का भोग लगे सन्त करे सेवा।
एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी, मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी।
अन्धन को आंख देत कोढ़िन को काया, बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।
दीनन की लाज राखो शम्भु-सुत वारी, कामना को पूरा करो जग बलिहारी।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, सूरश्याम शरण आये सुफल कीजे सेवा।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।
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