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श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा, स्तोत्र, आरती (Vindhyeshwari Chalisa, Stotra, Arti)
इस ब्लॉग के माध्यम से श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र (Vindhyeshwari Stotra), श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा (Shri Vindhyeshwari Chalisa), श्री विन्ध्येश्वरी देवी की आरती (Shri Vindhyeshwari Arti) आपके समक्ष प्रस्तुत है। अत्यंत शुभ फल प्राप्त करने हेतु यह पाठ हर नवरात्रि या शुक्रवार को नियमपूर्वक श्रद्धा, विश्वास एवं एकाग्रचित हो करने पर समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है।
श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र | Shri Vindhyeshwari Stotra
निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी।
बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी।
गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी।
वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं।
कपाल-शूल धारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी।
वरा-वराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनी॥
कपीन्द्र जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणी।
जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी।
महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥
पुंरदरादि सेवितां, पुरादिवंशखण्डितम्।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं॥
श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा | Shri Vindhyeshwari Chalisa
॥दोहा॥
नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब।
सन्त जनों के काज में करती नहीं विलम्ब।।
॥चौपाई॥
जय जय जय विन्ध्याचल रानी, आदि शक्ति जग विदित भवानी।
सिंहवाहिनी जय जगमाता, जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता।
कष्ट निवारिणी जय जग देवी, जय जय सन्त असुर सुर सेवी।
महिमा अमित अपार तुम्हारी, शेष सहस मुख वर्णत हारी।
दीनन के दुख हरत भवानी, नहिं देख्यो तुम सम कोउ दानी।
सब कर मनसा पुरवत माता, महिमा अमित जगत विख्याता।
जो जन ध्यान तुम्हारो लावै, सो तुरतहिं वांछित फल पावै।
तू ही वैष्णवी तू ही रुद्रानी, तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी।
रमा राधिका श्यामा काली, तू ही मातु सन्तन प्रतिपाली।
उमा माधवी चण्डी ज्वाला, बेगि मोहि पर होहु दयाला।
तू ही हिंगलाज महारानी, तू ही शीतला अरु विज्ञानी।
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता, तू ही लक्ष्मी जग सुख दाता।
तू ही जाह्नवी अरु उत्राणी, हेमावती अम्ब निरवाणी।
अष्ट भुजी वाराहिनी देवा, करत विष्णु शिव जाकर सेवा।
चौसट्टी देवी कल्यानी, गौरी मंगला सब गुण खानी।
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी, भद्रकालि सुन विनय हमारी।
वज्र धारिणी शोक नाशिनी, आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी।
जया और विजया बैताली, मात संकटी अरु विकराली।
नाम अनन्त तुम्हार भवानी, बरनै किमि मानुष अज्ञानी।
जापर कृपा मात तव होई, तो वह करै चहै मन जोई।
कृपा करहु मोपर महारानी, सिद्ध करिए अब यह मम बानी।
जो नर धरै मात कर ध्याना, ताकर सदा होय कल्याना।
विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै, जो देवी का जाप करावै।
जो नर कहं ऋण होय अपारा, सो नर पाठ करे शतबारा।
निश्चय ऋण मोचन होई जाई, जो नर पाठ करे मन माई।
अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावै, या जग में सो अति सुख पावै।
जाको व्याधि सतावे भाई, जाप करत सब दूर पराई।
जो नर अति बन्दी महँ होई, बार हजार पाठ कर सोई।
निश्चय बन्दी ते छुटि जाई, सत्य वचन मम मानहु भाई।
जापर जो कछु संकट होई, निश्चय देविहिं सुमिरे सोई।
जा कहँ पुत्र होय नहिं भाई, सो नर या विधि करे उपाई।
पाँच वर्ष सो पाठ करावे, नौरातन में विप्र जिमावे।
निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी, पुत्र देहिं ताकहँ गुणखानी।
ध्वजा नारियल आन चढ़ावे, विधि समेत पूजन करवावे।
नित्य प्रति पाठ करे मन लाई, प्रेम सहित नहिं आन उपाई।
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा, रंक पढ़त होवे अवनीसा।
यह जनि अचरज मानहुँ भाई, कृपा दृष्टि जापर हुई जाई।
जय जय जय जग मातु भवानी, कृपा करहु मोहिं पर जन जानी।
आरती श्री विन्ध्येश्वरी देवी जी की | Shri Vindhyeshwari Arti
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया॥ टेक॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले तेरी भेंट चढ़ाया।
सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केशर तिलक लगाया।
नंगे पांव तेरे अकबर जाकर, सोने का छन्त्र चढ़ाया।
ऊँचे ऊँचे पर्वत बना देवालय, नीचे शहर बसाया।
पर सत्युग त्रेता द्वापर मध्ये, कलयुग राज सवाया।
धूप दीप नैवेद्य आरती, मोहन भोग लगाया।
ध्यानू भगत मैया (तेरा) गुण गावै, मन वांछित फल पाया।
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया॥ टेक॥
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