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श्री हनुमान चालीसा | श्री हनुमान जी की आरती | संकटमोचन हनुमानाष्टक | बजरंग बाण | श्री हनुमान वंदना / मंत्र
Hanuman Chalisa | Arti | Sankatmochan Hanumanashtak | Bajrang Baan | Mantras
इस ब्लॉग के माध्यम से हनुमान आरती (Hanuman Arti), हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa), संकटमोचन हनुमानाष्टक (Sankatmochan Hanumanashtak), बजरंग बाण (Bajrang Baan) और हनुमान वंदना / मंत्र (Hanuman Vandana or Hanuman Mantras) आपके समक्ष प्रस्तुत है। अत्यंत शुभ फल प्राप्त करने हेतु यह पाठ हर रोज नियमपूर्वक श्रद्धा, विश्वास एवं एकाग्रचित हो करने पर समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है।
श्री हनुमान वंदना / मंत्र | Shree Hanuman Vandana / Mantras
ऊं हं हनुमते नम:।।
Om Han Hanumate Namaha
मनोजवम मारुत तुल्य वेगम, जितेंद्रियम बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानारायूथ मुख्यम, श्रीराम दूतं शरणम प्रपद्धे।।
रामरक्षास्तोत्रम् (23)
Manojawam MaruttulyavegamJitendriyam Budhhimmatamvarishtham
Vatatmajam Vanarayuth Mukhyam Shree Ramdootam Sharnamprapadye
Ramrakshastotram (23)
श्री हनुमान चालीसा | Hanuman Chalisa
॥दोहा॥
श्री गुरू चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरों पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देऊ मोहि, हरहु क्लेश विकार।
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुनसागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन वरन बिराज सुवेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै, काँधे मूंज जनेऊ साजै।
शंकर सुवन केसरी नन्दन, तेज प्रताप महा जग वन्दन।
विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा।
भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे।
लाय संजीवन लखन जियाये, श्री रघुबीर हरषि उर लाये।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई।
सहस बदन तुम्हरो जस गावै, अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा, नारद शारद सहित अहीसा।
यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना, लंकेश्वर भये सब जग जाना।
जुग सहस्र योजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।
दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।
राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक तें कॉपै।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महाबीर जब नाम सुनावै।
नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमान बीरा।
संकट ते हनुमान छुड़ावै, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।
सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै, सोई अमित जीवन फल पावै।
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा।
साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस वर दीन जानकी माता।
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा।
तुम्हरे भजन राम को भावै, जनम जनम के दुख बिसरावै।
अन्त काल रघुवर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई।
और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेइ सर्व सुख करई।
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।
जय जय जय हनुमान गोसाँई, कृपा करहु गुरूदेव की नाँई।
जो शत बार पाठ कर कोई, छूटहिं बंदि महा सुख होई।
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा।
तुलसी दास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।
॥दोहा॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
संकटमोचन हनुमानाष्टक | Sankatmochan Hanumanashtak
बाल समय रवि भक्षि लियो, तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी विनती तब, छाँडि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो॥को.१
बालि की त्रास कपीस बसै, गिरिजात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि शाप दियो, तब चाहिये कौन विचार विचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो॥को.२
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौं हम सों जु, बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया सुधि प्राण उबारो॥को.३
रावण त्रास दई सिय को तब, राक्षस सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगिसु, दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो॥को.४
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावण मारो।
लै गृह वैद्य सुखेन समेत, तबै गिरि द्रोन सुबीर उपारो।
आनि संजीवनि हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्राण उबारो॥को.५
रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेश तबै हनुमान जु, बन्धन काटि के त्रास निवारो॥को.६
बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देविहिं पूजि भली विधि सों बलि, देऊ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तबही, अहिरावण सैन्य समेत संहारो॥को.७
काज किए बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो॥को.८
॥दोहा॥
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥
बजरंग बाण | Bajrang Baan
॥ दोहा॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करें सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान॥
जय हनुमान सन्त हितकारी, सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।
जन के काज विलम्ब न कीजे, आतुर दौरि महासुख दीजे।
जैसे कूदि सिन्धु महि पारा, सुरसा बदन पैठि विस्तारा।
आगे जाई लंकिनी रोका, मारेहु लात गई सुर लोका।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा, सीता निरखि परमपद लीन्हा।
बाग उजारि सिंधु मँह बोरा, अति आतुर यम कातर तोरा।
अक्षय कुमार को मार संहारा, लूम लपेट लंक को जारा।
लाह समान लंक जरि गई, जय जय ध्वनि सुरपुर में भई।
अब विलम्ब केहि कारन स्वामी, कृपा करहु उर अन्तर्यामी।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता, आतुर होय दुःख हरहु निपाता।
जय गिरधर जय जय सुखसागर, सुर समूह समरथ भटनागर।
श्री हनु हनु हनु हनुमंत हठीले, बैरिहिं मारु वज्र को कीले।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो, महाराज प्रभु दास उबारो।
ओंकार हुँकार प्रभु धावो, बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।
ओं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमान कपीशा, ओं हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के, रामदूत धरु मारु धाय के।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा, दुःख पावत जन केहि अपराधा।
पूजा जप तप नेम अचारा, नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।
वन उपवन मग, गिरी गृह माँही, तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।
पाँय परौ कर जोरि मनावौं, यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।
जय अन्जनि कुमार बलवन्ता, शंकर सुवन वीर हनुमन्ता।
बदन कराल काल कुल घालक, राम सहाय सदा प्रतिपालक।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर, अग्नि बैताल काल मारी मर।
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की, राखु नाथ मर्यादा नाम की।
जनक सुता हरिदास कहावो, ताकी शपथ विलम्ब न लावो।
जय जय जय धुनि होत अकाशा, सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।
चरण शरण कर जोरि मनावौं, यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।
उठु उठु चलू तोहि राम दुहाई, पाँय परौं कर जोरि मनाई।
ओं चं चं चं चं चपल चलंता, ओं हनु हुन हुन हनु हनुमन्ता।
ओं हं हं हाँक देत कपि चंचल, ओं सं सं सहमि पराने खल दल।
अपने जन को तुरत उबारो, सुमिरत होय आनन्द हमारो।
यह बजरङ्ग बाण जेहि मारे, ताहि कहो फिर कौन उबारे।
पाठ करे बजरङ्ग बाण की, हनुमत रक्षा करें प्राण की।
यह बजरङ्ग बाण जो जापै, ताते भूत प्रेत सब काँपै।
धूप देय अरु जमैं हमेशा, ताके तन नहिं रहै कलेशा।
॥दोहा॥ प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धेरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
आरती बजरंग बली जी की (हनुमान जी की आरती ) | Hanuman Arti
आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
जाके बल से गिरवर कांपे, रोग दोष जाके निकट न झांके।
अंजनी पुत्र महा बलदाई, सन्तन के प्रभु सदा सहाई।
दे बीड़ा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाये।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई, जात पवनसुत वार न लाई।
लंका जारि असुरि सब मारे, सीता रामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े धरणी में, लाये संजीवन प्राण उबारे।
पैठि पाताल तोरि जम कारे, अहिरावण की भुजा उखारे।
बाईं भुजा असुर संहारे, दाईं भुजा सब सन्त उबारे।
सुर नर मुनि जन आरती उतारें, जय जय जय हनुमान उचारें।
कंचन थार कपूर की बाती, आरती करत अंजना माई।
जो हनुमान जी की आरती गावै, बसि बैकुन्ठ अमर पद पावै।
लंक विध्वंस किये रघुराई, तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई।
आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
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